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सोमवार, 5 मार्च 2012

करीक्का रूपैया - (हास्य कविता)

करीक्का रूपैया।
(हास्य कविता)
नेहोरा करैत करैत मरि गेल कारीगर
नहि लियअ आ ने दियअ करीक्का रूपैया
मुदा ई की कोनो काज करेबाक अछि 
त कहल जायत जल्दी लाउ करीक्का रूपैया।

मौका भेटला पर सरकारी बाबू नहि छोड़त
रूपैया बिन एक्को टा काज ने होएत
अहाँ फायल ल व्यर्थ घूमैत छी यौ भैया
काज करेबाक अछि त जल्दी लाउ करीक्का रूपैया।।

कहलहुँ त स्वीस बैंक मे खाता खोलाएब
चुपेचाप पार्टी ऑफिस मे चंदा जमा कराएब
जीबैत जिनगी हम अप्पन मुर्ती बनाएब
मोन होएत त विदेश यात्रा पर जाएब।।

कतबो हल्ला करब तै स की
स्वीस बैंक मे जमा रहत करबै की
लुटा रहल अछि सरकारी खजाना
अहुँ लुटु हमहुँ लुटैत छी जमा करू करीक्का रूपैया।।

भ्रष्टाचाराक ढे़रीऔलहा संपति हमरे छी
एहि दुआरे पक्ष-विपक्ष मे झगरा भेल औ भैया
एक दोसराक मुँह पर करीक्का स्याही फेकलक
राजनैतिक घमासान मचा देलक करीक्का रूपैया।।

रामलीला मैदान मे जनआंदोलन भेल
लोकपाल पर कोनो ठोस कारवाई ने भेल
सरकार फोंफ काटि रहल अछि बुझलहुँ की
साफ सुथरा लोकपाल कहियो आउत ने।।

भ्रष्टाचार मे खूम नाम कमेलहुँ मुदा
तइयो संतोष नहि भेल औ भैया
भ्रष्टाचाराक रोटी खा देह फुलाउ
संपैत ढ़ेरियाउ अहाँ जमा करू करीक्का रूपैया।।

दुनियाक सभ सँ नमहर लोकतंत्र मे
कुर्सी हथिएबाक होड़ मचल अछि
अहाँ जुनि पछुआउ गठजोड़ करू यौ भैया
चुपेचाप अहाँ जमा करू करीक्का रूपैया।।

हल्ला-गुल्ला करने किछ काज ने होएत
बिना किछ लेने-देने फायल ने घुसकत
ईमानदारी स किछो नहि तकैत की छी
जल्दी जेबी गरम करू लाउ अहाँ करीक्का रूपैया।।

लेखक:- किशन कारीगर

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