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शनिवार, 12 जनवरी 2013

डिनर डिप्लोमेसी (हास्य कविता)

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डिनर डिप्लोमेसी

(हास्य कविता)



डिनर टेबल पर परोसल अछि

मटर पनीर आ शाही पनीर

छौंकल अछि घी देसी

आउ-आउ ई छी डिनर डिप्लोमेसी।



हम सतारूढ़ दल वला छी

आई सहयोगी दल वला लेल

डिनर माने भोज आयोजित भेल

हमरा समर्थन भेटल खूम बेसी।



आब बाहर सँ समर्थन देनिहार

बाकि रहि गेल छथि त

आई हुनके नामे राजनीतिक डिनर

ई छी डिनर डिप्लोमेसी।



अहाँ सभ जे खाएब

हम अहाँक फरमाईस पुराएब

मुदा एकटा गप कहि दि हम

बाहरि समर्थन के कहाबद्धि कराएब।



भरि पेट खाई जाई जाउ

अहाँ जे खाएब से हम खुआएब

मुदा ई कहू त चुपेचाप रहब

आ की मध्यावधि चुनाव करबाएब।



धू जी महराज अहूँ त

एकदम ताले करैत छी

खाइत-पीबैत काल ई गप नहि

पहिने दारू मँगाउ अहाँ बिदेशी।



डिनर टेबुल के नीचा मे देखू

बोतल राखल अछि देसी-बिदेशी

भरि छाक पीब लियअ

ई छी डिनर डिप्लोमेसी।



अच्छा ई कहू त सरकार

एतेक खर्चा अपना जेबी

आ कि सरकारी खजाना सँ

हमरा ध लेलक बेहोशी।



होश मे आउ गठबंधन बचाउ

हम सत्ता मे छी की कहू

अपनो खर्चा सरकारी भेल बड्ड बेसी

ई छी डिनर डिप्लोमेसी।।



कवि:- किशन कारीगर

आकाशवाणी दिल्ली।

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