मिथिलांचल टुडे मैथिलि पत्रिका

मिथिलांचल टुडे मैथिलि पत्रिका पहिल अंक लअके बहुत जल्दिय आबी रहल अछि,अपनेक सबहक समक्ष , किछू हमहूँ कहब आ किछु अहूँ के सुनब,देखू -- http://www.mithilanchaltoday.in/ , E- mail - mithilanchaltoday@gmail.com

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

॥ वाणीकेँ बूझू महत्व ॥

वसंत पंचमी पर विशेष
॥ वाणीकेँ बूझू महत्व ॥
वाग्देवी सरस्वती माए वाणी , विद्या ,
ज्ञान-विज्ञान एवं कला-कौशल आदिकेँ
अधिष्ठात्री मानल जायत छथि । ई प्रतीक
छथि मानवमे निहित ओहेन चैतन्य केँ , जे मानुष्यकेँ
अंधकार सँ ज्ञान रूपी प्रकाश दिश अग्रसर
करबैयत छथि ।
सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेदमे सरस्वतीकेँ दू
रूपक दर्शन होइत अछि - प्रथम वाग्देवी आओर
द्वितीय सरस्वती । हिनका वुद्धि सँ सम्पन्न ,
प्रेरणादायिनी आ प्रतिभाकेँ तेज करय
वाली शक्ति कहल गेल अछि । ऋग्वेद संहिताकेँ
सूक्त संख्या 8/100 मे वाग्देवीक महिमा केँ
वर्णन अछि । ऋग्वेद संहिताकेँ दशम मंडलकेँ
125म सूक्त पूर्णतया वाक्(वाणी)केँ समर्पित
अछि । एहि सूक्तकेँ आठ ऋचाकेँ माध्यम सँ स्वयं
वाक्शक्ति अपन सामर्थ्य , प्रभाव , सर्वव्यपकता आओर महत्ताकेँ उद्घोष करैय छथि ।
@वाणीकेँ महत्व :-
बृहदारण्य उपनिषदमे राजा जनक महर्षि याज्ञवल्क्य सँ पूछैत छथि - जखन सूर्य
डूबि जाइत अछि , चन्दमाकेँ चाँदनी नहि रहैत
अछि आ आगि सेहो मिझा जायत अछि , एहन समय
मनुष्यकेँ प्रकाश देय वाली वस्तु की अछि ???
ऋषि उत्तर दैय छथि - ओ "वाक्(वाणी)"केँ
अधिष्ठात्री भगवती सरस्वती छथि । तखन वाक्
मानवकेँ प्रकाश दैयत अछि । मानवकेँ लेल परम
उपयोगी मार्ग देखाबैय वाली शक्ति "वाक
(वाणी)"केँ अधिष्ठात्री छथि भगवती सरस्वती । छांदोग्य उपनिष्दकेँ अनुसार , जौँ वाणीकेँ अस्तित्व
नहि रहैत तँ नीक-बेजायकेँ ज्ञान नहि होयत ,
सत्य-असत्यक ज्ञान नहि होयत अछि , सहृदय-
निष्ठुरमे भेदक पता नहि चलैत अछि । तैँ वाक्(वाणी)केँ उपासना करू । ज्ञानक एकमात्र अधिष्ठान वाक् अछि । प्राचीन
कालमे वेदादि समस्त शास्त्र कंठस्थ कयल जाइत
छल । गुरू द्वारा शिष्य सभकेँ शास्त्रक ज्ञान
वाणीक माध्यम सँ भेटैत छल । शिष्य सभकेँ गुरूमंत्र
वाणी माध्यम सँ भेटैत छल ।
वाग्देवी सरस्वती केँ आराधनाक प्रसांगिकता आधुनिक युगमे सेहो अछि । मोबाइल द्वारा वाणी(ध्वनि) केँ संप्रेषण एक स्थान सँ
दोसर स्थान होइत अछि । ई ध्वनि-तरंग "नाद-
ब्रह्म"क रूप छी ।
@वसंत पंचमी छी वागीश्वरी जयंती :-
जी खाली रसास्वादनक माध्यम नहि , बल्कि वाग्देवी केँ सिंहासन सेहो छी । "देवी भागवत"क अनुसार वाणीकेँ अधिष्ठात्री सरस्वती देवीक अविर्भाव
श्रीकृष्णक जिह्वाकेँ अग्रभाग सँ भेल अछि ।
परमेश्वरकेँ जिह्वा सँ प्रकट भेल वाग्वेदी सरस्वती कहबैत छथि । अर्थात वैदिक कालक वाग्देवी बादमे सरस्वतीकेँ नाम सँ
प्रसिद्ध भेली । ग्रन्थ सभमे माघ शुक्ल पंचमी (वसंत पंचमी)केँ वाग्देवीकेँ प्रकट होयके तिथि मानल जायत अछि । एहि कारण वसंत
पंचमीकेँ दिन "वागेश्वरी जयंती" मनाइल जाइत
अछि , जे सरस्वती-पुजाकेँ नाम सँ प्रचलित अछि ।
@वाणीकेँ महत्ता पहचानु :-
वाग्देवीकेँ आराधनामे निहित आध्यात्मिक संदेश
अछि कि अपना सभ जे किछु बाजी , सोचि-समैझकेँ
बाजू । मधुर वाणी सँ शत्रुओ केँ मित्र बना सकैत
छी , जखन कि कटु वाणी अपनोकेँ आन बना दैत
अछि । वाणीक बाण जिह्वाकेँ कमान सँ
निकलि गेल , तँ फेर वापस नहि होइत अछि ।
एहि द्वारे वाणीक संयम आओर सदुपयोग
वाग्देवीकेँ प्रसत्र करैयकेँ मूलमंत्र अछि । जखन
व्यक्ति मौन होइत रहैत छथि , तखन वाग्देवी अंतरात्माकेँ आवाज
बनि सत्प्रेरणा दैयत छथि ।
जय माँ सरस्वती

कृष्णानन्द चौधरी

लगमा , दरभंगा ,

मिथिला , भारत

1 टिप्पणी: