मिथिलांचल टुडे मैथिलि पत्रिका

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बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

गहीर आँखिक व्यथा (कथा)


आइ-काल्हि शहरी मध्यवर्गक भोरका रूटीन सब ठाम एक्के रहै ए। चाहे ओ छोट शहर हुए वा महानगर। जँ घर मे स्कूल जाइवाला बच्चा आछि तँ भोरे-भोर उठू आ बच्चा केँ तैयारी मे लागि जाउ। एक नजरि घडी दिस रहै छै जे कहीं लेट नै भऽ जाइ। बस स्टाप पर अलगे भीड आ जे अपने सँ स्कूल पहुँचाबै छथि, हुनकर सभक भीड स्कूल गेट पर। कम बेसी सभ शहरक हाल एहने रहै ए। भागलपुर सेहो एहि सब सँ फराक नै छै। भोर मे सात बजे सँ लऽ कऽ साढे आठ बजे तक सौंसे ट्रैफिक जाम आ भीड भाड रहै छै। संजोग सँ हमहुँ एहि भीड भाडक एकटा हिस्सा रहै छी। छोटकी बेटी केँ स्कूल पहुँचेबाक हमरे ड्यूटी रहै ए। अलार्म लगा कऽ भोरे भोर छह बजे उठि जाइ छी। जौं छह सँ आगू सुतल रहलौं, तँ श्रीमतीजीक सुभाषितानि शुरू भऽ जाइ छै जे हे देखियौ आइ स्कूल छोडेलखिन्ह। जखन सात पर घडीक काँटा आबि जाइ ए तखन हबड हबड बेटीक डैन पकडने स्कूल दिस भागै छी आ जँ समय पर गेटक भीतर ढुका देलियै, तँ बुझाइत अछि जे दुनिया जीत लेलौं। इ तँ भेल नित्यक कार्यक्रम। आब किछ विशेष। स्कूलक इलाका मे नित्य भोरे बहुत रास अभिभावकक जुटान हेबाक कारणेँ गपक छोट छोट ढेरी टोल बनल रहै ए। सभक अपन अपन ग्रुप छै आ इ ग्रुप सभक जुटान हेबा लेल ढेरी चाह आ पानक दोकान सभ सेहो। अस्तु, तँ हमरो एकटा ग्रुप बनि गेल अछि, जाहि मे ब्लाक वाला ठाकुरजी, कालेजक प्रोफेसर दासजी, पोस्ट आफिस वाला शर्माजी, कपडा दोकान वाला मोहन सेठ, सर्वे वाला मेहताजी आ आरो किछ गोटे शामिल छथि। हम सब नित्य बच्चा केँ स्कूल छोडलाक बाद ओतुक्का घनश्यामक चाह दोकान पर जुटै छी आ चाहक संग भरि पोख गपक सेहो रसास्वादन करै छी। निजी समस्या सँ लऽ कऽ देशक राजनीति, अमेरिकाक दादागीरी, सचिनक सेनचुरी, आर्थिक समस्या, टूटल रोड, बिजलीक कमी, मँहगीक मारि, कम दरमाहा आदि बहुते विषय सब पर नित्य अंतहीन बहस होइत रहै ए। कहियो काल जँ बेसी लेट भऽ जाइ ए तँ घरनीक तामस सँ भरल फोन हमर सभक सभा भंग कऽ दैत ए। कखनो कऽ मोबाईल फोन पर तामसो होइ ए जे केहन सुन्नर बहस चलै छल आ बहसक असमय मृत्यु भऽ जाइ ए एकटा फोन काल पर। खैर इ भेल हमर भोरका नित्य कार्य। आब हम मूल कथा दिस बढै छी।

घनश्यामक चाह दोकान पर एकटा छोट बच्चा काज करै छल। नाम छलै बिनोद आ हमरा सब लेल ओ छल छोटू। घनश्याम कहै छलै बिनोदबा। इ बिनोद, बिनोदबा वा छोटू जे कहियै दस बरखक हएत। एक दिन बहसक विषय वस्तु छल चाइल्ड लेबर। हम सब अपन चिन्ता प्रकट करै छलौं। ठाकुरजी बजलाह जे यौ ऐ दोकान मे जतय छाह पीबै छी सेहो एकटा बाल मजदूर काज करै ए। एकाएक हमरा सभक धेआन छोटू पर चलि गेल। एतेक दिन सँ इ गप नजरि मे किया नै आबै छल, यैह सोचऽ लगलौं। ठाकुरजी घनश्याम केँ कहलखिन्ह जे बाउ इ गलती काज केने छी अहाँ। पुलिस पकडत आ मोकदमा सेहो हएत। घनश्याम बाजल जे अहाँ जूनि चिन्ता करू। हमर पूरा सेटिंग अछि। लेबर आफिसक बडा बाबू हमर ग्राहक छथि आ कोतवालीक दरोगा सेहो एतय आबै छथि। आइ तक तँ किछ नै कहलाह आ आगू देखल जेतै। हम बजलौं- "से तँ ठीक ए, मुदा इ कहू जे एते छोट बच्चा सँ काज करेनाई अहाँ के नीक लगै ए।" घनश्याम- "जखन एकर बापे केँ नीक लगै छै तखन हमरा की जाइ ए। तीन सय टाका महीनवारी दय छियै।"

हम धेआन सँ बिनोद केँ देखलौं। ओकर आँखि बड्ड गहीर छलै। कोनो सुखायल सपना जकाँ ओकर आँखि मे काँची सुखा कऽ सटल छलै। हमर हृदय करूणा सँ भरि गेल। हमरा रहल नै गेल। हम ओकरा लग बजेलियै आ पूछलियै- "बउआ कोन गाम घर छौ।" बिनोद बाजल- "हम्मे जगतपुरो केँ छियै।" हम- "बाबूक की नाम ए।" बिनोद- "हमरो बाबूरो नाम जीबछ दास छै।" हम- "पढै नै छी अहाँ? किया काज करै छी?।" बिनोद- "हमरो बाबू कहलकौं जे काम नै करभीं, त घरो मे चूल्ही नै जरथौं। ऐ सँ हम्मे काम पकडी लेलियै।" हम- "हम अहाँक बाबू सँ भेंट करऽ चाहै छी।" बिनोद ताबत हमरा सँ नीक जकाँ गप करऽ लागल छल आ मुस्की दैत कहलक- "हमरो बाबू आज अइथौं। थोडा देर रूकी जा, भेंट होइ जेथौं।"

हम ओतै बिलमि गेलौं। कनी काल मे कनियाँ फोन केलथि- "आइ आफिस नै जेबाक ए।" हम- "बस आधा घण्टा मे आबै छी।" कनियाँ- "इ महफिल आ चौकडी अहाँ केँ बरबादे कऽ कऽ छोडत। जे फुराइ ए सैह करू।" हम देखलौं जे मण्डलीक सब सदस्यक मोबाईल टुनटुनाईत छल। खैर कनी कालक बाद एकटा दीन हीन व्यक्ति दोकान पर आयल। बिनोद कहलक- "हमरो बाबू आबी गेल्हौं। जे गप करना छौं, करी लए।" हम ओहि व्यक्ति सँ पूछलौं- "अहीं जीबछ दास थिकौं।" ओ बाजल- "जी मालिक। केहनौ खोजी रहलौं छलियै हमरा।" हम- "अहाँ अपन छोट बच्चा सँ मजदूरी कियाक करबै छियै? ओकर पढै लिखैक उमरि छै। आओर सरकारी कानून सेहो बनि गेल अछि जे अहाँ बच्चा सँ मजदूरी नै करा सकै छी।" जीबछ- "अरे मालिक सरकारो की करतै? फाँसी लटकाय देतै? घरो रहतै त भूखले मरी जेतै।" हम- "कतेक बाल बच्चा अछि अहाँक?" जीबछ- "पाँच गो बेटा औरो दू गो बेटी छै।" हम- "ककरो पढबै छियै की नै?" जिबछ बिहुँसैत कहलक- "पहीले खाना पीना पूरा होतै तभें नी पढाई होतै।" हम- "एते जनसंख्या कियाक बढेने छी?" जीबछ- "आब होइ गेलै त की करभौं। हमे भी बच्चा मे मजदूरीये केलियौं मालिक। हमरा और के भाग मे यही लिखलो छौं।" हम- "देखू जे भेल से भेल। बच्चा केँ मजदूरी छोडाउ आ स्कूल मे भर्ती करू। सरकार दुपहरियाक खेनाई सेहो दै छै। नै तँ हम लेबर विभाग मे खबरि कऽ देब। कनी एक बेर बिनोदक आँखिक सपना दिस देखियौ। ओकर की दोख छै? कमे अवस्था मे केहन लागै छै। अहाँक दया नामक वस्तु नै ए की? अहींक बच्चा थीक। सरकारक ढेरी योजना छै। अहाँ लोन लऽ सकै छी। अपन कारोबार कऽ सकै छी। नरेगा मे रोजगारक गारण्टी छै। इंदिरा आवास मे मकान लऽ सकैत छी।" पता नै हम की सब कहैत चलि गेलौं। हमरा चुप भेलाक बाद जीबछ बाजल- "मालिक अपने सब ठीके कहलियै। लेकिन सबे जगहो पर कमीशनो खोजै छै। हमे कहाँ से देभौं कमीशन। ढेरी इनक्वाइरी औरो चिट्ठी पतरी होइ छौं। एतना लिखा पढी औरो दौडा दौडी हमरा से नै सपरथौं।" हम- "ठीक छै, एखन तँ हम जाइ छी, मुदा अहाँ केँ जे कहलौं से करब आ कोनो दिक्कत हएत तँ हमरा सँ भेंट करब। हम अहाँक चिट्ठी बना देब आ जतय कहऽ पडत कहि देब।" फेर हम घर चलि गेलौं। सभा विसर्जित भऽ गेल छल।

दोसर दिन जखन स्कूल गेलौं, तँ फेर सँ घनश्यामक दोकान पर चाहक जुटान भेल। आइ बिनोद दोकान पर नै छल। हम गर्व सँ बाजलौं- "देखलियै बिनोदक मुक्ति भऽ गेल। आब ओकर गहीर आँखिक सपना फेर सँ हरिआ जाएत।" घनश्याम कहलक- "नै सर, बिनोदबाक बाप अहाँ सब सँ डरि गेल आ हमरा ओतय सँ हटा लेलक। कहै छल जे कहीं साहब सब पकडबा नै दैथ, तैं एकरा कोनो दोसर ठाम रखबा दैत छियै।" हम अवाक रहि गेलौं। बिनोदक गहीर आँखिक सपना हमरा नजरिक सामने ठाढ भेल हमरा पर हँसि कऽ कहै छल- "सब सपना पूरा होइ लेल थोडे होई छै। किछ सपनाक अकाल मृत्यु भऽ जाइ छै। हमरो अकाल मृत्यु भऽ गेल अछि। अहाँ व्यर्थ हमरा जीयेबाक प्रयास कऽ रहल छी।" हम हताश भऽ गेलौं। ओहि दिन सँ बिनोद केँ बहुत ताकलियै, मुदा पूरा भागलपुर मे ओ कतौ नै भेंटल। बच्चा सबहक बडा दिनक छुट्टी मे एकटा भाडाक गाडी सँ गाम जाइ छलौं। बाट मे नारायणपुर मे चाह पीबा लेल गाडी रोकलौं, तँ देखै छी जे बिनोद ओहि चाहक दोकान पर काज करैत छल। हम ओकरा दिस बढलौं की ओ जोर सँ कानऽ लागल। दोकानक मालिक हमरा कहलक- "बच्चा केँ किया डरबै छियै?" हम- "नै डरबै नै छियै। हम ओकरा जानै छियै।" दोकानक मालिक- "से तँ हम देखिये रहल छी। चुपचाप चाह पीबू आ अपन गाम दिस जाउ।" ताबत कनियाँ सेहो आबि गेली आ कहऽ लागली- "अहाँ केँ बताह हेबा मे आब कोनो कसरि नै रहि गेल। चलू तँ चुपचाप।" हम देखलौं जे बिनोद कतौ नुका गेल छल अपन गहीर आँखिक सपना समेटने आ हम चुप भऽ गाडी मे बैसि गेलौं।

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